मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय आज शनिवार को जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड के ग्राम डाड़टोली में शहीद वीर बुधु भगत जयंती समारोह एवं उरांव समाज के वार्षिक सम्मेलन में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने समाज के महापुरूषों के अतुलनीय योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि उरांव समाज का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। इस समाज ने अनेक महापुरूष दिए हैं जिनका मार्गदर्शन सभी लोगों को मिलता रहा है। महान क्रांतिकारी वीर बुधु भगत जिन्होंने ने आजादी के लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई।
ज्ञात हो कि जनजातीय समाज से आने वाले बुधु भगत का जन्म अविभाजित बिहार के रांची जिले में स्थित शिलागाईं गांव में 17 फरवरी 1792 को हुआ था। उनमें अद्भुत संगठन क्षमता थी। उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ क्रांति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में ‘‘लरका विद्रोह’’ नामक ऐतिहासिक आंदोलन का सूत्रपात्र भी किया।
बुधु भगत ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला यु्द्ध शुरू किया। गांव के लोगों को अंग्रेजों से यु्द्ध करने के लिए तैयार किया। उनकी संगठन क्षमता ऐसी थी कि लोगों ने उन्हें देवता का अवतार माना। उन्होंने सिल्ली, चोरेया, पिठौरिया, लोहरदगा और पलामू में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करने का कार्य किया। बुधु भगत ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी वह उनके हाथ नहीं आए तो उन पर तत्कालीन समय मे एक हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया।
14 फरवरी 1832 के दिन अंग्रेजों की सेना ने बुधु भगत और उनके साथियों को सिलगाई गांव में घेर लिया। अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक बंदूकें थीं, जबकि बुधु भगत और उनके साथियों के पास तीर कमान और तलवार जैसे हथियार थे। अंग्रेजों की चेतावनी के बाद भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और अपने अनुयायियों के साथ अंग्रेजों से युद्ध करते हुए बलिदान हो गए। इस युद्ध में उनके भाई, भतीजे और दोनों बेटे उदय और करण व बुधु भगत की दोनों बेटियां रुनिया और झुनिया भी वीरगति को प्राप्त हुई।
गौरतलब है कि उरांव समाज के प्रमुख महापुरुषों में उरांव योद्धा वीरांगनी माता कईली दाई, पदमश्री कवि हलधर नाग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सिध्धु कान्हू, उरांव योद्धा वीरांगना सिनगी दाई, स्वतंत्रता सेनानी पुरखा पंचबल जतरा टाना भगत, महापुरुष साहेब बाबा कार्तिक उरांव एवं महान वीर बुधु भगत शामिल हैं।