Home छत्तीसगढ़ जर्जर छात्रावास बना खतरा: टपकती छत को प्लास्टिक से ढंका, मासूमों की...

जर्जर छात्रावास बना खतरा: टपकती छत को प्लास्टिक से ढंका, मासूमों की जिंदगी दांव पर

बलरामपुर रामानुजगंज

बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के शंकरगढ़ विकासखंड अंतर्गत जोका पाठ छात्रावास की हालत किसी खंडहर से कम नहीं है। यहां पढ़ने और रहने वाले 50 से अधिक आदिवासी बच्चे अपनी जान दांव पर लगाकर जर्जर भवन में रहने को मजबूर हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि पूरे छात्रावास को बारिश से बचाने के लिए प्लास्टिक की चादर से ढककर रखा गया है। छात्रावास अधीक्षक का कहना है कि बरसात के दिनों में भवन की छत से लगातार पानी टपकता है, जिसके कारण बच्चों का रहना और पढ़ाई करना बेहद कठिन हो जाता है।

अधीक्षक ने बताया कि इस समस्या की जानकारी कई बार उच्च अधिकारियों को दी गई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। पिछले वर्ष भी यही समस्या थी और इस साल भी वही स्थिति दोहराई जा रही है। दीवारें पूरी तरह सीलन और नमी से भर चुकी हैं। जगह-जगह दरारें और गड्ढे हो गए हैं। किसी भी वक्त बड़ा हादसा हो सकता है।

30 बिस्तरों पर 50 बच्चों का ठिकाना
छात्रावास में वर्तमान समय में 50 बच्चे रह रहे हैं। लेकिन यहां बिस्तर सिर्फ 30 ही उपलब्ध हैं। मजबूरीवश दो-दो बच्चे एक ही बिस्तर पर सोने को विवश हैं। बच्चों को न तो उचित सोने की व्यवस्था मिल रही है और न ही रहने के लिए सुरक्षित भवन।

उल्लेखनीय है कि यह छात्रावास विशेष रूप से सुदूर अंचल के आदिवासी बच्चों के लिए बनाया गया था, ताकि वे यहां रहकर पढ़ाई कर सकें और बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकें। लेकिन जिस स्थिति में यह भवन आज खड़ा है, उसे देखकर कहना मुश्किल है कि यहां कोई सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण उपलब्ध हो रहा है।

प्रशासन की अनदेखी पर उठे सवाल
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि आज तक यहां किसी भी जिला अधिकारी ने दौरा तक नहीं किया। अधीक्षक से जब पूछा गया कि आपके जिला अधिकारी का क्या नाम है, तो उन्होंने साफ कहा कि उन्हें याद नहीं। इसका सीधा मतलब यह है कि आज तक इस छात्रावास की स्थिति जानने कोई जिम्मेदार अधिकारी यहां पहुंचे ही नहीं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि आदिवासी आयुक्त अधिकारी की गंभीर लापरवाही का परिणाम है। वर्षों से यहां के बच्चे प्लास्टिक से ढंके भवन में रह रहे हैं और प्रशासन आंख मूंदकर बैठा है। बच्चों की जिंदगी से बड़ा कोई विषय नहीं, लेकिन अफसरों की उदासीनता ने यह स्थिति बना दी है।

बच्चों के भविष्य पर संकट
आदिवासी विभाग के प्रयासों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि आदिवासी अंचलों में शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं बेहद खराब हैं। जोका पाठ छात्रावास इसका जीता-जागता उदाहरण है। जहां मासूम बच्चे तंग हालात में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। न समय पर बिस्तर, न सुरक्षित भवन और न ही स्वच्छ वातावरण। बारिश के दिनों में प्लास्टिक की छत के नीचे बच्चों का सोना और पढ़ाई करना यह दर्शाता है कि शिक्षा के अधिकार का सपना यहां कितना अधूरा है।

तुरंत कार्रवाई की मांग
स्थानीय ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन तुरंत इस भवन की मरम्मत या नए भवन के निर्माण की दिशा में कदम उठाए। क्योंकि यदि समय रहते सुधार नहीं किया गया तो किसी भी दिन बड़ी दुर्घटना हो सकती है। बच्चों के भविष्य और जीवन की सुरक्षा को लेकर ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से गुहार लगाई है कि जल्द से जल्द उच्च अधिकारियों की टीम मौके पर भेजी जाए और उचित कदम उठाए जाएं।