बीते कुछ महीनों से लगातार यह खबरें सामने आ रही हैं कि मिडिल ईस्ट के ऊपर से उड़ान भरने के दौरान यात्री विमान का जीपीएस सिस्टम बीच-बीच में काम करना बंद कर रहा है. ऐसी स्थिति में विमान ‘अंधे व्यक्ति’ की तर्ज पर ही हवा में नजर आते हैं. नागरिक उड्डयन नियामक डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने बड़े सुरक्षा खतरे को भांपते हुए सभी भारतीय एयरलाइनों को एक एडवाइजरी जारी की है. एडवाइजरी का उद्देश्य एयरलाइंस को खतरे की प्रकृति और इस पर प्रतिक्रिया देने के बारे में सचेत करना है.
एडवाइजरी में कहा गया, “नए खतरों और GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) जैमिंग और स्पूफिंग की रिपोर्ट के कारण विमानन उद्योग अनिश्चितताओं से जूझ रहा है.” रिपोर्ट “हाल के दिनों में मध्य पूर्व में हवाई क्षेत्र पर जीएनएसएस हस्तक्षेप की बढ़ती रिपोर्ट” पर ध्यान देती है और नेविगेशन सिस्टम के जाम होने से निपटने के लिए आकस्मिक उपायों के विकास का आह्वान करती है. डीजीसीए ने खतरे की निगरानी और विश्लेषण नेटवर्क बनाने की भी मांग की है.
बिना अनुमति ईरान पहुंच गया विमान
सितंबर के अंत में, ईरान के पास कई कमर्शियल फ्लाइट अपने नेविगेशन सिस्टम के बंद हो जाने के बाद बीच यात्रा के दौरान अंधकार की स्थिति में आ गई थी. इस दौरान एक विमान बिना अनुमति के ही ईरानी हवाई क्षेत्र में पहुंच गया था. पेशेवर पायलटों द्वारा बनाए गए ऑप्सग्रुप ने इस मुद्दे को उठाया है. जिसके बाद अब भारत सरकार भी इसे लेकर काफी सतर्क हो गई है.
कैसे काम करती है स्पूफिंग?
मन में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर विमानों की स्पूफिंग कैस काम करती है. दरअसल, मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में उड़ान भरने वाले विमानों को शुरू में एक नकली जीपीएस सिग्नल मिलता है. इस सिग्नल का उद्देश्य विमान के अंतर्निर्मित सिस्टम को यह सोचकर मूर्ख बनाना है कि वे अपने इच्छित मार्ग से मीलों दूर उड़ रहे हैं. सिग्नल अक्सर इतना मजबूत होता है कि विमान की प्रणाली की अखंडता से समझौता हो सकता है. इसका परिणाम यह होता है कि कुछ ही मिनटों में, इनर्शियल रेफरेंस सिस्टम (IRS) अस्थिर हो जाता है और कई मामलों में, विमान अपने नेविगेशन की सभी क्षमताओं को खो देता है.